सरल स्वस्थ दिनचर्या
समदोषःसमाग्निश्चसमधातुमलःक्रियाः।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनःस्वस्थइतिअभिधीयते॥
– (सुश्रुत संहिता सूत्रस्थान १५/१०)
जिस व्यक्ति के तीनो दोष (वात ,पीत्त ,कफ) , शरीर की अग्नियाँ (जठराग्नि आदि ), मल सम अवस्था में रहते हैं और मन आत्मा और इंद्रियाँ जिसके प्रसन्न अवस्था में होते हैं वह व्यक्ति ही पूर्ण स्वस्थ कहलाएगा।
स्वास्थ्य की इस पूर्णता के लिए आवश्यक है कि हमारी जीवनचर्या सव्यवस्थित और नियमित हो। इसके दो चरण हैं – दिनचर्या और रात्रिचर्या। दिनचर्या आदर्श दैनिक कार्यक्रम है जो हम सुबह उठने से लेकर संध्या तक करते हैं और रात्रिचर्या संध्या से लेकर शयन से पहले किए जाने वाले अभ्यास हैं।
आयुर्वेद यह मानता है कि दिनचर्या और रात्रिचर्या शरीर और मन का अनुशासन है। इससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत बनती है और मल पदार्थों से शरीर शुध्द होता है ।
स्वास्थ्य के आकांशी को सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त का साधारण अर्थ सूर्योदय से पहले का समय है। इस समय का वातावरण सामान्यतः निर्दोष और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। हल एलरोड ने अपनी पुस्तक “द मिरकल मोर्निंग ” में छः आदतों के बारे में बताया है जिससे उन्होंने स्वयं के रोगी शरीर को निरोगी काया में परिवर्तित कर दिया और सफलता की ऊँचाइयों को प्राप्त किया।
- मौन का अभ्यास : पहली आदत है मौन का अभ्यास । मौन होकर आत्मबोध व प्रार्थना करें। आज के जीवन के लिए प्रकृति को धन्यवाद दें।
- स्वप्रेरणा : दूसरा अभ्यास है स्वप्रेरणा। अपने आप को बलवर्धक वाक्य कहें (मैं स्वस्थ हूँ , मैं ख़ुश हूँ आदि)। स्वयं से सकारात्मक वार्तालाप करें । आप स्वयं से पूछें की आप जीवन के क्षेत्र में स्वयं को किस रूप में देखना चाहते हैं, यह परिवर्तन आप क्यूँ चाहते हैं और इसके लिए क्या – क्या साधन चाहिए।
- मानसिक चित्रण : मानसिक चित्रण में अपने अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के उपायों का मानसिक अवलोकन करें। जो कार्य कार्यन्वित करना है उसकी प्रक्रिया को होता हुआ देखें।
- व्यायाम : व्यायाम से शारीरिक जड़ता और आलस्य दूर होता है। इससे शरीर में सिरोटोनिन हॉर्मोन का स्राव होता जिससे मन प्रसन्न और शरीर सक्रिय रहता है। योगाभ्यास इसका अच्छा विकल्प है।
- स्वाध्याय : स्वाध्याय से व्यक्ति आत्मोन्नती की ओर बढ़ने लगता है। स्वाध्याय से एक व्यक्ति एक ही जीवन में अनेक लोगों के जीवन का साक्षात्कार कर लेता है। प्रतिदिन 10 पन्ने पढ़ने पर साल के 3650 पन्ने पढ़े जा सकते हैं जो 18 पुस्तकों के बराबर है।
- लेखन : प्रतिदिन लेखन कार्य से हम अपने निर्धारित लक्ष्य से वास्तविक दूरी का पता कर सकते है और नई व्यावहारिक योजना बना सकते हैं। इससे हमारे पास एक विवरण होगा की अभी तक हमने क्या क्या प्राप्त कर लिया है और क्या प्राप्त करना बाक़ी है।
मानव जीवन का सर्वोपरि ध्येय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति है। ये चारों तभी सम्भव हैं जब मानव शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ हो। इसके लिए आवश्यक है कि हम प्राकृतिक नियमों का अनुसरण करें। हम दिनचर्या के साथ रात्रिचर्या का भी पालन करें। रात्रिचर्या के मुख्य बिंदु हैं :
- भोजन: रात को सोने से 2 घंटे पूर्व भोजन करें। भोजन सुपाच्य होना चाहिए। गरिष्ठ भोजन का निषेध करें।
- तत्वबोध: शयन से पहले तत्वबोध के माध्यम से दिनभर की गतिविधियों का मूल्याँकन कर आज के दिन के लिए धन्यवाद करें।
- ध्यान : यदि सम्भव हो तो रात्रि में प्रार्थना ध्यान करें। फिर शयन करें।
पर्याप्त नींद आवश्यक है। इससे ही अगले दिन की दिनचर्या का निर्धारण होता है। सरल स्वस्थ दिनचर्या से शरीर और मन शुद्ध होते हैं, दोष (वात-पित्त-कफ) संतुलित होते हैं, प्रतिरक्षा तंत्र मज़बूत होता हैं और नवयौवन की प्राप्ति होती है।
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